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गुरुवार, 21 जनवरी 2010

कबीर की साखियां

१.
राम-रहीमा एक है, नाम धराया दोयाकहाई कबीरा दो नाम सुनी, भरम परोऊ मति कोय
२.
काशी-काबा एक है, एकै राम रहीममैदा इक पकवान बहु, बैठी कबीरा जीभ
३.
एक वास्तु के नाम बहु, लीजै वास्तु पहिचानानाम पक्ष नहीं कीजिए, सार तत्व ले जान
४.
राम कबीरा एक है, दूजा कबहू न होयांतर ताती कपट की, ताते दीखे दोय
५.
जाती न पूछोऊ साधू की, जो पूछोऊ तो ज्नानामोल करो तलवार का, परा रहन दो म्यान
६.
कबीरा टी पीर है, जो जाने पर पीरजो पर पीर न जानी है, सो काफिर बेपीर
७.
पोथी पड़ी-पड़ी जग मुवा, पंडित भाया न कोयादाई आखर प्रेम का, पड़े सो पंडित होय
८.
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छाबायाबिं पानी साबुन बिना, निर्मल कराइ सुभाय
९.
माती कहैं कुम्हार सौं, तू क्या र्रूंदे मोयायेक दिन ऐसा होयेगा, मैं र्रून्धून्गी तोय
१०.
जहां दया तहां धर्म है, जहां लोभ तहां पापजहान क्रोध तहां काल है, जहां जहां क्षमा तहां आप
११.
पाहन पूजे हरी मिली, टू मैं पूंजूँ पहाराताते यह चाकी भली, पीसी खाय संसार
१२.
कबीर माला काठ की, कही समझावे तोहिमान ना फिरावै आपनों, कहा फिरावै मोहि
१४.
मूरख को समुझावते, जनान गाँठ का जईकोयाला होई न ऊजरो, नव मन साबुन लाई
१५.
माला टू कर में फिरे, जीभ फिरे मुख माहिन्मनुवा टू चाहुन्दिसी फिरे, यह ते सुमिरन नाहीं

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