भारतीय संविधान सभा
भारतीय संविधान सभा की प्रथम बैठक ९ दिसम्बर १९४६ को नई दिल्ली में कौंसिल हाऊस के कांस्टीच्यूशनल हाल में हुई। स्थायी अध्यक्ष को चुनाव होने तक संविधान सभा के सब से वृद्ध सदस्य बिहार के डा० सचिचदानन्द सिन्हा अंतरिम अध्यक्ष बनाए गए।
अमेरिका, चीन तथा आस्ट्रेलिया की सरकारों से बधाई और शुभकामना संदेश प्राप्त हुए। अमेरिकी विदेश मंत्री श्री अचेसन ने अपने संदेश में कहा- "शांति और स्थिरता लाने तथा मानवता के सांस्कृतिक उत्थान में भारत का महान योगदान रहा है और समूचे विश्व के स्वतंत्रता प्रेमी लोग आपके विचार-विमर्श में गहरी रूचि लेंगे।"
डाक्टर सिन्हा ने संविधान सभा के सामने 'अमरत्व के लिए संविधान' का आदर्श रखा।
११ दिसम्बर, १९४६ को डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष चुने गए। सदन के सभी पक्षों के सदस्यों ने नए अध्यक्ष के व्यक्तित्व की भूरी-भूरी प्रशंसा की।
अपने भाषण में अध्यक्ष ने कहा- "मैं जानता हूं कि यह सभा कुछ जन्मजात सीमाओं के साथ अस्तित्व में आई है। इसकी कार्रवाई चलाने और निर्णय करते हुए हमें इन मर्यादाओं का पालन करना होगा। मैं यह भी जानता हूं कि इन सीमाओं के बावजूद यह सभा पूरी तरह स्वतंत्र और आत्म-निर्णय में सक्षम है जिसकी कार्रवाई में कोई बाहरी शक्ति या सत्ता संशोधन-परिवर्तन नहीं कर सकती।
उद्देश्य की घोषणा-
१३ दिसम्बर, १९४६ को पं० जवाहरलाल नेहरू ने एक प्रस्ताव रखा, जिसमें संविधान के लक्ष्य का निरूपण किया गया। यह था स्वतंत्र-प्रभुसत्तसंपन्न लोकतंत्र जिसे सारी शक्ति और अधिकार जनता से प्राप्त हो। २२, जनवरी १९४७ को यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया।
पारित होने के बाद इस प्रस्ताव को स्वतंत्रता के घोषणापत्र का नाम दिया गया और ५० सदस्यों की एक सलाहकार समिति गठित की गई। सभा के अध्यक्ष को २२ सदस्य और मनोनीत करने का अधिकार दिया गया। सलाहकार समिति को नागरिकों के मूलभूत अधिकारों अल्पसंख्यकों के संरक्षण और पिछड़े तथा आदिवासी इलाकों के प्रशासन के बारे में संविधान सभा को परामर्श देना था।
तीसरा अधिवेशन -
ढाई महीने की गड़बड़ और तनाव की स्थिति के बाद २८ अप्रैल, १९४७ को सभा की तीसरी बैठक हुई।
इस बार बड़ौदा, जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, पटियाला, बीकानेर, कोचीन तथा रीवां के प्रधानमंत्री और चुने हुए प्रतिनिधि भी उपस्थिति थे।
अध्यक्ष के स्वागत-भाषण का उत्तर देते हुए दीवानों और प्रतिनिधियों ने देश के एकीकरण के प्रति उत्साह और प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि किसी भी रियासत के लिए अलग-थलग रहना कठिन होगा। सरदार पनिक्कर ने कहा - "हम यहां स्वेच्छा से आए हैं। हम किसी दबाव या धमकी के कारण यहां नहीं आए। जो ऐसा कहता है, वह हमारे विवेक का अपमान करता है।"
इस संक्षिप्त अधिवेशन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि सलाहकार समिति की ओर से सरदार पटेल द्वारा पेश मूलभूत अधिकारों की स्वीकृति थी, रिपोर्ट के कुछ मुद्दों पर जोरदार बहस हुई। यह स्पष्ट किया गया कि हमारे मूलभूत अधिकार कानून द्वारा लागू किए जाएंगे इन्हें न्यायिक संरक्षण प्राप्त होगा तथा ये आयरलैंड के संविधान के अनुरूप होंगे।
'समानता के अधिकार' से धर्म, जाति, संप्रदाय अथवा लिंग के भेदभाव के बिना सभी नागरिकों को समान अधिकारों की गारंटी मिलती है और सरकार इन भेदों के आधार पर किसी असमानता को मान्यता नहीं देगी।
अंततः अस्पृश्यता की कलंकपूर्ण प्रथा समाप्त हो जाएगी और इस आधार पर किसी को हेय मानना अपराध माना जाएगा।
जहां तक सरकार की मान्यता का संबंध है, उपाधियां समाप्त कर दी गईं।
मूलमूल अधिकारों में बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निस्शस्त्र और शांतिपूर्वक एकत्र होने की स्वतंत्रता, संघ और संस्थाएं बनाने की स्वतंत्रता, बिना किसी रुकावट के देश भर में घूमने तथा देश के किसी भी भाग में रहने की स्वतंत्रता की व्यवस्था की गई है।
धार्मिक विश्वास और आचरण की स्वतंत्रता के अंतर्गत सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए किसी भी धर्म का पालन करने, प्रसार और प्रचार करने की सबको समान रूप से स्वतंत्रता है।
सभा का जुलाई अधिवेशन पहले के तीनों अधिवेशनों से काफी भिन्न था। सभी रिसायतों के प्रतिनिधियों के अलावा मुस्लिम लीग के सदस्य भी उसमें शामिल हुए।
संविधान सभा द्वारा गठित सभी समितियों, खासकर संघ संविधान समिति, प्रान्तीय संविधान समिति और सलाहकार समिति ने अप्रैल से जुलाई तक की अवधि में खूब काम किया। अप्रैल का अधिवेशन जब समाप्त हुआ था तो देश शंका की नौका में डोल रहा था और दोराहे पर खड़ा था। यह स्पष्ट नहीं था कि भारत एक रहेगा या पाकिस्तान का निर्माण होगा, परंतु माउंटबेटन की ३ जुलाई की योजना के बाद स्थिति एकदम स्पष्ट हो गई और संविधान सभा पूरे संकल्प और लगन के साथ काम में जुट गई।
३ जून के बाद से देश में गड़बड़ और तनाव के विपरीत संविधान सभा में वातावरण सद्भावपूर्ण बना हुआ था। अध्यक्ष अपनी स्वभावगत गरिमा तथा विनम्रता द्वारा मुस्लिम लीग के सदस्यों की निष्ठा से संबंधित सभी प्रश्नों को अस्वीकार करते रहे। लीगी सदस्यों ने ऐसा आश्वासन दिया भी। किन्तु बाद में उनके नेता चौधरी खलीकुज्जमां ने एकाएक भारतीय डोमीनियन को छोड़कर पाकिस्तान की राह पकड़ ली।
प्रांतीय संविधान समिति के अध्यक्ष की हैसियत से सरदार पटेल ने रिपोर्ट पेश की। सामान्यतः प्रान्तीय विधानमंडल में एक सदन होना था, किन्तु दूसरे सदन की भी व्यवस्था की गई। कार्यपालिका में वयस्क मताधिकार द्वारा निर्वाचित गवर्नर होगा तथा प्रधानमंत्री और अन्य मंत्री होंगे।
पंडित नेहरू ने संघीय संविधान समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें भारत गणतंत्र स्थापित करने और उसमें ९ गवर्नरों के प्रांत, ५ मुख्य आयुक्तों के प्रांत तथा भारतीय रियासतों की व्यवस्था थी। भारतीय संसद के दो सदन होंगे-राज्य सभा और लोकसभा जो इंग्लैंड के हाउस आफ लार्डस तथा हाउस ऑफ कामन्स के समकक्ष होंगे। भारतीय संघ का प्रमुख राष्ट्रपति होगा, जिसका चुनाव हर पांच वर्ष बाद एक निर्वाचक मंडल द्वारा होगा। केंद्रीय मंत्रिमंडल ब्रिटिश पद्धति के अनुरूप होगा। एक उच्चतम न्यायालय होगा, जो केंद्र और राज्यों के मध्य तथा राज्यों के आपसी विवादों को निपटाएगा और मूलभूत अधिकारों की रक्षा करेगा।
२२ जुलाई को देश का नया झण्डा स्वीकार किया गया।
रविवार, 24 जनवरी 2010
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3rd meeting of constitutional assembly kab hui ?
जवाब देंहटाएंIsme 26th April1947 likha hua h jabki 3rd meeting 26th Nov.1949 ko hui jo ki last meeting thi constitutional assembly ki ❓
13 Dec 1946
हटाएंnahi nahi yahi sahi hai 3rd meeting april 1947 mein hi hui thi
हटाएं13 Dec 1946
जवाब देंहटाएंमस्त पोस्त है।
जवाब देंहटाएंREGULATING ACT 1773 NOTES IN HINDI
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