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गुरुवार, 21 जनवरी 2010

कुछ पुस्तकें और उनके लेखक

कुछ पुस्तकें और उनके लेखक
1. Confessions of a Swadesi Reformer : Yashwant Sinha2. Can India Grow without Bharat : Shankar Acharya 3. Conversations with Arundhati Roy : The Shape of the Beast - Arunshati Roy4 From Servants to MAsters : S.L. Rao5. From My Jail : Tasleema Nasreen
6. शेन वार्न्स सेंचुरी - माई टॉप १०० टेस्ट क्रिकेटर्स : शेन वॉर्न 7. बैंकर टू द पुअर : मोहम्मद युनुस 8. Billions of Entrepreneurs : तरुण खन्ना 9. बहन जी - ए पॉलिटिकल बायोग्राफी ऑफ़ मायावती : अजय बोस 10. कन्फ़ैशन्स ऑफ़ ए स्वदेशी रेफोर्मेर : यशवंत सिन्हा
11. नो लिमिट्स : द विल टू सक्सीड : - माइकल फ्लेप्स12. द टेल्स ऑफ़ बीडल द बार्ड : जे.के.रोलिंग 13. Curfewed Night : बशर्रत पीर 14. इमेजिनिंग इंडिया : आइडियाज फॉर द न्यू सेंचुरी : - नंदन निलेकानी15. बराक ओबामा, द न्यू फेस ऑफ़ अमरीकन पॉलिटिक्स : - मार्टिन डुपुइस, कीथ बोकेलमान16. Termites in the Trading System - How Preferential Agreements Under mine Free Trade: जगदीश भगवती 17. ट्रू कलर्स : एडम गिलक्रिस्ट18. सस्टेनिंग इंडियास ग्रोथ मिरैकल : जगदीश एन. भगवती19. द फॅमिली एंड द नेशन : डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम व आचार्य महाप्रज्ञ20. स्पीकिंग फॉर माई लाइफ : चेरी ब्लेयर
21. माई चायना डायरी : - के. नटवर सिंह 22. द स्कोर ऑफ़ माई लाइफ : - जुबीन मेहता 23. सोंग्स ऑफ़ द गुरुज : खुशवंत सिंह 24. एस एम जी : देवेन्द्र प्रभु देसाई25. वैडिंग एलबम : गिरीश कर्नाड 26. इन द लाइन ऑफ़ फायर : परवेज मुशर्रफ़ 27. Amen-Autobiography of a Nun : सिस्टर जेस्मे 28. द 3 मिस्टेक्स ऑफ़ माई लाइफ : चेतन भगत 29. इंडियन बाई चोइस (Indian By Choice) : अमित दास गुप्ता 30. ड्रीम्स ऑफ़ रिवर्स एंड सीज : टिन पार्क्स
31. माई एलबम - प्रवीण महाजन32. द प्लेजर्स एंड सौरोस ऑफ़ वर्क - एलेन डी. बोटन 33. वार्स, गन्स एंड वोट्स : डेमोक्रेसी इन डैंजरस प्लेसेज - पॉल कोलियर34. गार्डिंग इंडियास इंटेग्रिटी : ए प्रोअक्टिवे गवर्नर स्पीक्स-लेफ्ट. जनरल (सेवानिवृत) एस.के.सिन्हा34. नरेन्द्र मोदी :द आकिर्टेक्ट ऑफ़ ए माडर्न स्टेट - एम.वी. कामथ व कालिंदी रंडेरी35. माधव राव सिंधिया : ए लाइफ - वीर सिंघवी व नमिता भंडारे 36. The Immortal : Amit Chaudhary37. The Associate : John Greeshm38. A Better India, A Better World : एन.आर. नारायनमूर्ती 39. Dreams from My Father : Barack Obama 40. The Audacity of Hope: Thoughts on Reclaiming the American Dreams - Barack Obama

कांग्रेस और औपनिवेशिक संघर्ष

कांग्रेस और औपनिवेशिक संघर्ष
एशिया में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले देशों के नेताओं को इस तथ्य का ज्ञान था कि उनका संघर्ष सभी उपनिवेशी देशों में आम संघर्ष का एक हिस्सा है। इसलिए उन्होंने एक दूसरे का समर्थन किया। सनयात सेन ने एक बार चीन में क्रांतिकारी संघर्ष के लिए एकत्र किए गए धन को फिलीपीन्स के क्रांतिकारियों को देने और चीन में विद्रोह कराने की योजना को स्थगित करने का प्रस्ताव किया था ताकि फिलीपीन्स की आजादी को और तेज किया जा सके। अन्य देशों में संघर्षशील उपनिवेशी जनता के प्रति एकता व्यक्त करने के मामले में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं का रवैया अन्य देशों से कहीं ज्यादा स्पष्ट था। समान संघर्ष और एकता की यह भावना दादा भाई नौरोजी, बनर्जी, गोखले, तिलक, लाजपतराय और उस समय के अन्य नेताओं ने महसूस की थी। गांधी जी और जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में यह विचार हमारे विश्वास और नीति का अंग बन गया।
उपनिवेशवाद का कांग्रेस द्वारा विरोध
जैसे जैसे दिन गुजरते गए कांग्रेस औपनिवेशिक दासता वाले देशों की आजादी के संघर्ष को समर्थन देने के मामले में और ज्यादा मुखर होती गयी तथा साम्राज्यवादी और अन्य औपनिवेशिक देशों की और कड़े शब्दों में निन्दा करने लगी। राष्ट्रीय संघर्ष के उस अनूठे कदम को याद करने से किसी को भी गर्व की अनुभूति होगी जब ब्रिटिश शासन द्वारा बर्मा को भारत में मिलाने की कार्रवाई को कांग्रेस ने विस्तारवादी कार्रवाई कहा था और आजादी के लिए बर्मा के लोगों का समर्थन किया था। १९२१ में कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पास करके बर्मा के लोगों को अपनी आजादी के संघर्ष के लिये शुभकामनाएं दी थीं और घोषणा की थी कि कांग्रेस भारत के आजाद होने पर बर्मा को भारत से अलग रहने का समर्थन करेगी। गांधी जी ने यह कह कर भारत की स्थिति स्पष्ट कर दी कि बर्मा कभी भी भारत का अंग नहीं रहा - उसे कभी भी भारत का अंग नहीं बनाना चाहिए। बर्मा को हड़पने के कदम का प्रश्न ही नहीं लिया जा सकता। इसके काफी पहले राष्ट्रवादी नेतृत्व ने भारत की सीमाओं के विस्तार की ब्रिटिश नीति की निन्दा की थी और बड़ी संख्या में सेना और सैनिक खर्च से भारत को जकड़ने की कड़ी आलोचना की थी। १८७८-८० के दिनों में ही राष्ट्रीय नेताओं ने ब्रिटिश शासन द्वारा अफगानिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ने का विरोध किया था और सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने इसे एक ऐसा अन्याय बताया था जिससे इतिहास के पन्ने काले हुए हैं। १८९७ में कांग्रेस के अध्यक्ष जी. शंकरन नायर ने भारत के लिए शांतिपूर्ण नीति पर चलने की वकालत की ताकि भारत की सीमाओं के आसपास शांति का वातावरण रहे और भारत अपना आंतरिक विकास कर सके।
राष्ट्रवाद का समर्थन
इसी तरह राष्ट्रवादी नेताओं ने सैनिक अभियानों और साम्राज्यवादी विस्तार और एशिया साम्राज्यवादी युद्धों में भारतीय सैनिकों और साधनों के दुरुपयोग का भी विरोध किया। उन्होंने यह भी महसूस किया कि यह साम्राज्यवाद अवगुण है। १८८२ में ब्रिटेन 'कथित' भारत सरकार की साझेदारी के रूप में राष्ट्रवादी आन्दोलन के दमन के लिए मिस्र में सैना भेजी। राष्ट्रवादी नेताओं ने इसे अनैतिक और आक्रमक कार्रवाई और कहा कि युद्ध का मतलब ब्रिटिश साम्राज्यवाद के हितों का पोषण करना है। इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस ने आयरलैन्ड के राष्ट्रवादियों और मिस्र के राष्ट्रवादियों को संघर्ष से अपना समर्थन व्यक्तः किया। एक अन्य उदाहरण चीन के संघर्ष का है। चीन ब्रिटेन के प्रभुत्व वाली ताकतों का शिकार हो गया और प्रथम विश्व युद्ध के बाद जापानी साम्राज्य की मुट्ठी में चला गया। साथ ही यह देश युद्ध लोलुपों द्वारा विभिन्न सामा्रज्यवादी ताकतों की साठगांठ से शापग्रस्त हो कर युद्ध का अड्डा बन गया। चीन एशिया से एक ऐसा बीमार देश बन गया, जहां विदेशी ताकतों, विदेशी व्यावसायिक हितों, प्रतिक्रियावाद की आंतरिक ताकतों सामंती और सैनिक समयों को खुल कर खेलने का मौका मिल रहा रहा था। यहां की जनता दमन के नीचे घुट रही थी। सनसयात सेन के नेतृत्व में एक पुनर्गठित राष्ट्रवादी पार्टी ने साम्राज्यवाद और देश के भीतर के युद्ध लोलुपों के विरुद्ध संघर्ष शुरू किया और चीन के एकीकरण और उसकी प्रभुसत्ता और प्रादेशिक अखंडता के लिए कैन्टन से १९२५ में एक अभियान शुरू किया। कांग्रेस ने इस राष्ट्रवादी संघर्ष को समर्थन दिया और चीन में भारतीय सेना के इस्तेमाल की कड़ी निन्दा की। गांधी जी ने चीन के छात्रों पर गोली चलाने और उनकी हत्या करने के लिए हत्या करने के लिए भारतीय सेना के इस्तेमाल की निन्दा की। उनकी यह निन्दा इस सचाई को उजागर करने के लिए थी कि भारत को केवल उसके खुद के शोषण के लिए गुलाम बना कर नहीं रखा गया है बल्कि चीन के महान और प्राचीन लोगों के शोषण में ग्रेट ब्रिटेन को सहयोग देने के लिए भी गुलाम रखा गया।"

खिलाफत आंदोलन और गांधीजी
भारत के मुसलमान उद्वेलित हो उठे। मुस्लिम लीग के नेता डाक्टर अंसारी ने मुस्लिम राज्यों की अखंडता और आजादी की मांग उठाई और कहा कि इस्लाम के पवित्र स्थानों सहित जजीरात-उस अरब को खलीफा को सौंप दिया जाए। १९१८ में कांग्रेस की स्वागत समिति के अध्यक्ष हकीम अजमल खान ने इसी तरह के विचार व्यक्त किए। गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन को अपना पूर्ण समर्थन दिया और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन शुरू करने का फैसला किया। 'यंग इंडिया' पत्रिका में एक लेख में उन्होंने लिखा "मैं अपने साथ भारतीयों के संकट और दुख में भागीदार बनने के लिए बाध्य हूं। अगर मैं मुसलमानों को अपना भाई समझता और उनके हित को न्यायोचित मानता हूं तो यह मेरा कर्तव्य है कि मैं अपनी पूरी क्षमता के साथ उनकी मदद करूं।" गांधीजी ने दुनिया भर के मुसलमानों और खासतौर से भारत के मुसलमानों की भावनाओं की उपेक्षा करने के लिए मोन्टेगू और ब्रिटिश शासन की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, "मुझे यह जानकर आश्चर्य और निराशा हुई है कि साम्राज्य के वर्तमान प्रतिनिधि बेईमान और सिद्धांतहीन हैं। उन्हें भारत के लोगों की इच्छाओं के प्रति कोई सम्मान का भाव नहीं और वे भारत के सम्मान को कोई महत्व नहीं देते। मैं दुष्टों द्वारा संचालित सरकार के प्रति कोई प्रेमभाव नहीं दिखा सकता।" आजादी और मुक्ति के लिए कोई भी ऐसा आन्दोलन नहीं था जिसे कांग्रेस का समर्थन न मिला हो। सामा्रज्यवाद और फासिस्टवाद (अधिनायकवाद) की निन्दा करने में जवाहर लाल नेहरू सबसे आगे थे। स्पेन से इथियोपिया तक उन्होंने दबे हुए राष्ट्रों के प्रति कांग्रेस का समर्थन व्यक्त किया। जैसा कि १९३६ में उन्होंने कहा - "हमारे संघर्ष की सीमाएं, अपने देश तक ही सीमित नहीं हैं। बल्कि चीन और स्पेन तक फैली हैं।" वास्तव में जवाहरलाल नेहरू व्यक्तिगत और शारीरिक रूप से स्पेन में फासिस्टवाद के विरुद्ध संघर्ष में भाग लेना चाहते थे लेकिन भारत में आजादी के लिए संघर्ष की मांग के कारण ऐसा नहीं कर सके।
अधिनायकवाद का विरोध
१९३६ में मुसोलिनी के नेतृत्व में फासिस्ट इटली ने इथियोपिया (तब का अबीसीनिया) के विरुद्ध जब हमला किया तो कांग्रेस ने इथियोपिया की जनता के प्रति समर्थन किया। कांग्रेस ने इथियोपिया दिवस मनाया और साम्राज्यवाद और फासिस्टवाद के विरुद्ध जनमत जागृति किया। जवाहरलाल नेहरू यूरोप गए थे और लौटते समय जब उनका विमान रोम में उतरा तो मुसोलिनी ने उनसे भेंट करने की इच्छा व्यक्त की लेकिन जवाहरलाल नेहरू ऐसे तानाशाह से बात नहीं करना चाहते थे जिसने इथियोपिया की जनता के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा था। इसी तरह चीन पर जापान के आक्रमण पर कांग्रेस ने रोष व्यक्त किया और ठोस कदमों के साथ चीन की जनता का समर्थन किया। कांग्रेस ने देश भर में जापानी माल के बहिष्कार का आयोजन किया और चीनी जनता के संघर्ष के समर्थन में जापानी साम्राज्यवादियों के खिलाफ सभाएं और प्रदर्शन किए। बाद में कांग्रेस ने अपने सांकेतिक समर्थन के रूप में एक चिकित्सा दल चीन भेजा। इस प्रकार कांग्रेस औपनिवेशिक दासता की त्रासदी भोग रहे देशों की जनता के संघर्ष में कंधे से कंधा मिला कर खड़ी रही।
उपनिवेशवाद-विरोधी (प्रवक्ता श्री नेहरू )
जवाहरलाल नेहरू ने इस जागृति की प्रक्रिया और विदेशी दासता की जकड़े लोगों के प्रति एक की भावना को और तेज किया। वास्तव में जवाहरलाल औपनिवेशिक लोगों के संघर्ष की चेतना बन गए। यह एक सच्चाई है कि जवाहरलाल नेहरू ने फरवरी १९२७ में ब्रसेल्स में औपनिवेशिक दमन और साम्राज्यवाद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से भाग लिया था। इसके बाद ही कांग्रेस साम्राज्यवाद के विरुद्ध और राष्ट्रीय आजादी के लिए गठित लीग का सह सदस्य बन गयी। जवाहरलाल नेहरू, अल्बर्ट आइन्सटाइना मदाम सनपात सेन, रोमैं रोलां तथा विश्व के अन्य नेताओं के साथ ब्रसेल्स सम्मेलन के अध्यक्षों में से अध्यक्ष चुने गए और बाद में लीग की कार्यकारिणी के सदस्य बने। जवाहलाल नेहरू ने अपने भाषण में साम्राज्यवाद को पूंजीवाद का विकसित रूप बताया और उपनिवेश की दासता में जकड़े देशों के लिए समान संघर्ष और एक दूसरे को मदद देने की आवश्यकता पर बल दिया। खिलाफ आन्दोलन नाम से विख्यात तुर्की के मुसलमानों के संघर्ष समर्थन में १९२० में गांधी जी ने जो आन्दोलन चलाया उसे कौन भुला सकता है। यह वह समय भी था जब कांग्रेस राजनीतिक लोगों के सम्मेलन की वार्षिक जमात का चोला उतार कर न सिर्फ भारतीय मांगों का झरोखा बन गयी बल्कि राष्ट्रीय नीतियों को निश्चित करने और उसको लागू करने का एक संगठन बनी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का जनसंख्या के आधार पर पुनर्गठन किया गया। भारतीय आधार पर प्रांतीय कमेटियां बनाई गयीं और कांग्रेस कार्यसमिति का गठन हुआ।

विज्ञान के कुछ प्रश्न

1. हाल ही में इलिनोइस स्थित नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह खोज की है कि पृथ्वी के चुंबकत्व (गुरुत्वाकर्षण) का असली कारण समुद्री धाराएं हैं। क्या आप बता सकते हैं कि अभी तक इसका मूल कारण क्या माना जाता रहा है?
(क) भूगर्भ स्थित जल वाष्प (ख) भूगर्भ स्थित पिघली हुई धातुएं
(ग) भूगर्भ स्थित चुंबकत्व (घ) भूगर्भ स्थित कोड
2. यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के इंजीनियरों ने हाल ही में एक ऐसी वाशिंग मशीन तैयार की है, जो मात्र एक कप पानी में कपडे धो सकती है? इस मशीन में गंदगी साफ की जाती है?
(क) मोनो पॉलीमर से (ख) मल्टी पॉलीमर से
(ग) नाइलॉन पॉलीमर से (घ) इनमें से कोई नहीं
3. मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस वर्ष देश में एल निनो के प्रभाव के कारण मानसून कमजोर पड सकता है, जिससे देश के कई क्षेत्रों में सूखा पडने की आशंका है। एल निनो क्या है?
(क) हिंद महासागर का जल ज्यादा गर्म हो जाता है
(ख) अटलांटिक महासागर का जल ज्यादा गर्म हो जाता है
(ग) प्रशांत महासागर का जल ज्यादा गर्म हो जाता है
(घ) आर्कटिक महासागर का जल ज्यादा गर्म हो जाता है।
4. इस महीने जापान में पहली बार प्रदूषण रहित कार का बडे पैमाने पर उत्पादन होने जा रहा है? यह कार कौन सी है?
(क) आई-मी ईवी (ख) एन-मी ईवी
(ग) एम-मी ईवी (घ) एम-मी ईवी 1
5. डायबिटीज रोगियों में लो ब्लड शुगर की पहचान कुत्तों के जरिए भी की जा सकती है। यह अनोखा प्रयोग किस देश में किया जा रहा है?
(क) जापान (ख) जर्मनी
(ग) अमेरिका (घ) ब्रिटेन
6. टोक्यो मेडिकल ऐंड डेंटल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का मानना है कि सफेद बाल कैंसर से बचाव में मदद करते हैं। क्या आप बता सकते हैं कि बालों की वे कौन-सी कोशिकाएं हैं, जो इनके रंग के लिए जिम्मेदार हैं?
(क) मिलेनोसाइट्स (ख) नैलेनोसाइट्स
(ग) गु्रपसाइट्स (घ) सेल्ससाइट्स
7. पिछले दिनों नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के विशाल गड्ढों का एक विस्तृत नक्शा तैयार किया है, जिससे इन गड्ढों के बारे में खास जानकारी हासिल हो सकेगी। यह नक्शा तैयार करने में किस प्रमुख राडार की मदद ली गई?
(क) गोल्डफोर्थ (ख) जेम्स स्मिथ
(ग) गैलीलियो (घ) गोल्डस्टोन
8. राडार तरंगों को पृथ्वी से चंद्रमा तक आने-जाने में कितना समय लगता है?
(क) करीब तीन सेकेंड (ख) करीब डेढ सेकेंड
(ग) करीब चार सेकेंड (घ) करीब ढाई सेकेंड
9. पिछले दिनों कनाडा के वैज्ञानिकों ने मानव शरीर की उन कोशिकाओं की खोज की, जहां एड्स के विषाणु छिपे रहते हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह खोज एड्स के इलाज में काफी मददगार साबित होगी। इस खोज के अनुसार एड्स वायरस छिपा रहता है?
(क) लांग लिव मेमोरी सेल्स में (ख) शॉर्ट लिव मेमोरी सेल्स में
(ग) किडनी सेल्स में (घ) हार्ट सेल्स में
10. एड्स के इलाज हेतु अभी तक इस्तेमाल होने वाले एंटी वायरल ट्रीटमेंट की मुख्य खामी क्या है?
(क) वायरस सदैव सक्रिय रहता है। (ख) कुछ समय बाद वायरस सक्रिय हो जाता है।
(ग) किडनी खराब हो जाती है। (घ) लिवर खराब हो जाता है।
उत्तर-1.(ख), 2.(ग), 3.(ग), 4.(क), 5.(घ), 6.(क), 7.(घ) 8.(घ), 9.(क), 10.(ख)

विटामिन ,खनिज जीवन के लिए आवश्यक

विटामिन ,खनिज हमारे दैनिक जीवन के लिए आवश्यक
कुछ विटामिन हमारे शरीर के अंदर और कुछ हमारे खून जमा हो जाती है. इसमें विटामिन के दो वर्गीकरण हैं, वसा में घुलनशील विटामिन, और पानी में घुलनशील विटामिन
खनिज
* कैल्शियम स्वस्थ हड्डियों , तंत्रिका तंत्र, मांसपेशियों और दाँत के लिए आवश्यक है
* क्रोमियम -इन्सुलिन की प्रभावशीलता, बढ़ाने में महत्वपूर्ण है जो उचित चयापचय में आवश्यक है
* कॉपर रक्त कोशिका निर्माण और काम करता है विटामिन सी के साथ के लिए चिकित्सा के दौरान आवश्यक है.
* आयोडीन- शरीर की चयापचय के नियमन के लिए है.
* आयरन- खून के उत्पादन में महत्वपूर्ण है.
* मेग्नेशियम- कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन के उपयोग में एक माध्यम के रूप में कार्य करता है .
* मैंगनीज -उचित कंकाल प्रणाली विकास और सेक्स हार्मोनों के उत्पादन के लिए है.
* Molybdenum -जिगर से लोहे के परिवहन में एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में काम करता है.
* पोटेशियम -एक स्वस्थ तंत्रिका तंत्र, हृदय की मांसपेशी, और गुर्दे के लिए महत्वपूर्ण है.
* सेलेनियम एड्स -जो धमनियों और ऊतकों लोचदार रखते है.
* जिंक- घावों के समुचित उपचार के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है.
विटामिन
* विटामिन ए-- स्वस्थ त्वचा और आँखों की रोशनी, सबसे खासकर रात के समय के लिए ध्यान केंद्रित करने के लिए आवश्यक है. प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए यह एक महत्वपूर्ण विटामिन हैं कुछ एंटीऑक्सीडेंट विटामिन में से एक है. फूड्स , जिगर, सब्जियों, दूध , और ऑरेंज फल उच्च स्रोत हैं,
* विटामिन बी-- विटामिन को एक समूह का माना जाता है. इस वर्गीकरण में विटामिन B1, B2, B3, B5, B6, B7, B9, और B12 शामिल हैं. सामान्य लाल रक्त कोशिका निर्माण के लिए इन विटामिनों की जरूरत है. विटामिन बी के लिए खाद्य स्रोतों, सेम, अंडे, मछली (या अन्य seafoods), लाल मांस, गेहूं, सफेद मांस, दही, सब्जियों और जई दूध, मटर शामिल हैं.
* विटामिन सी की कोशिकाओं और ऊतकों के समुचित पुनर्जनन बनाए रखने में महत्वपूर्ण है. विटामिन सी घाव भरने में मदद करता है. यह संक्रमण और बीमारी के खिलाफ किसी भी प्रकार से लड़ने के लिए शरीर मदद करता है. हम cantaloupe, टमाटर, कीवी फल, खट्टे फल, मिठाई लाल मिर्च जैसे खाद्य पदार्थ से विटामिन सी हो सकता है, cabbages, ब्रोकोली, और स्ट्रॉबेरी.
* विटामिन डी-- स्वस्थ हड्डियों के विकास और रखरखाव में मदद करता है. हमें मजबूत और स्वस्थ दांत प्राप्त करने के लिए यह भी आवश्यक है. ये हमारे शरीर की कैल्शियम को अवशोषित करने के लिए क्षमता . हम, अंडे की जर्दी, अनाज, लीवर और दूध जैसे खाद्य पदार्थ से इस विटामिन प्राप्त कर सकते हैं .
* विटामिन ई --से एक विटामिन की है कि हमारे शरीर को लाभ का एक बहुत कुछ देना है. इस विटामिन का मुख्य कार्य हमारे लिए स्वस्थ आंखों, स्वस्थ त्वचा पाने के लिए स्वस्थ कोशिकाओं और ऊतकों को बनाना , इसके अलावा, यह बाहरी नुकसान से हवा में pollutants जैसे हमारे फेफड़ों को बचाने में मदद करता है. यह भी लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में एक प्रमुख भूमिका निभाता है. फूड्स , सार्डिन, नट, बीज, सब्जी, अंडे yolks, गेहूं, और जई विटामिन ई से समृद्ध होती हैं
* विटामिन के --एक गोंद की तरह काम करता है जब वहाँ एक कट जाता है. यह रक्त के थक्के में मदद करता है. यह रक्तस्राव को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है. सब्जियों सोयाबीन तेल, दही, दूध, और ब्रोक्कोली जैसे खाद्य पदार्थ खाने से विटामिन के मिल सकता है,

इतिहास के पन्नों पर:वंदे मातरम

इतिहास के पन्नों पर:वंदे मातरम
७ नवम्वर १८७६ बंगाल के कांतल पाडा गांव में बंकिम चन्द्र चटर्जी ने ‘वंदे मातरम’ की रचना की ।
१८८२ वंदे मातरम बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंद मठ’ में सम्मिलित ।
१८९६ रवीन्द्र नाथ टैगोर ने पहली बार ‘वंदे मातरम’ को बंगाली शैली में लय और संगीत के साथ कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में गाया।
मूलरूप से ‘वंदे मातरम’ के प्रारंभिक दो पद संस्कृत में थे, जबकि शेष गीत बांग्ला भाषा में।
वंदे मातरम् का अंग्रेजी अनुवाद सबसे पहले अरविंद घोष ने किया।
दिसम्बर १९०५ में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में गीत को राष्ट्रगीत का दर्जा प्रदान किया गया, बंग भंग आंदोलन में ‘वंदे मातरम्’ राष्ट्रीय नारा बना।
१९०६ में ‘वंदे मातरम’ देव नागरी लिपि में प्रस्तुत किया गया, कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने इसका संशोधित रूप प्रस्तुत किया
१९२३ कांग्रेस अधिवेशन में वंदे मातरम् के विरोध में स्वर उठे ।
पं. नेहरू, मौलाना अब्दुल कलाम अजाद, सुभाष चंद्र बोस और आचार्य नरेन्द्र देव की समिति ने २८ अक्तूबर १९३७ को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पेश अपनी रिपोर्ट में इस राष्ट्रगीत के गायन को अनिवार्य बाध्यता से मुक्त रखते हुए कहा था कि इस गीत के शुरुआती दो पैरे ही प्रासंगिक है, इस समिति का मार्गदर्शन रवीन्द्र नाथ टैगोर ने किया ।
१४ अगस्त १९४७ की रात्रि में संविधान सभा की पहली बैठक का प्रारंभ ‘वंदे मातरम’ के साथ और समापन ‘जन गण मन..’ के साथ..।
१९५० ‘वंदे मातरम’ राष्ट्रीय गीत और ‘जन गण मन’ राष्ट्रीय गान बना ।
२००२ बी.बी.सी. के एक सर्वेक्षण के अनुसार ‘वंदे मातरम्’ विश्व का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत।

आजादी की कहानी, डाक टिकटों की जबानी

डाक टिकट
देश की आजादी में अनेक महान् विभूतियों-क्रांतिकारियों, सत्याग्रहियों एवं स्वतंत्रता सेनानियों-का योगदान रहा है। इसके साथ ही आजादी में अनेक आंदोलनों, घटनाओं, स्थानों एवं वस्तुओं की भी महती भूमिका रही। स्वतंत्र भारत में आजादी में इनके योगदान व महत्ता को दरशाते डाक टिकट जारी किए गए।जब डाक टिकटों पर नए-नए समसामयिक व्यक्तित्व, घटनाएँ, स्थान, परंपराएँ आदि चित्रित होने लगे तब डाक टिकटों के संग्रह की अवधारणा ही बदल गई। परिणामतः समसामयिक डाक टिकट जीवंत ऐतिहासिक दस्तावेज बनते चले गए, जो अब सिक्कों की भाँति इतिहास-लेखन के नए सशक्त माध्यम (टूल्स ऑफ हिस्ट्री राइटिंग) के रूप में सामने आए हैं। वस्तुतः डाक टिकट इतिहास के झरोखे हैं।
डाक टिकट की शुरूआत सर्वप्रथम इंग्लैंड में हुई। डाक टिकटों को जारी करने का मुख्य उद्देश्य यह था कि अपनी चिट्ठी-पत्री आदि भेजनेवाले लोग अपना डाक शुल्क इन डाक टिकटों के माध्यम से पहले ही भुगतान कर दें। समय के साथ-साथ डाक शुल्क भरने का यह माध्यम अप्रत्याशित रूप से इतना सफल रहा कि विश्व के एक के बाद दूसरे देश इसकी उपयोगिता एवं आवश्यकता से प्रभावित हुए बिना न रह सके। आज विश्व इन डाक टिकटों के घेरे में समा चुका है।शुरू में एक नए अवतार व आकर्षण के कारण अपनी रानी विक्टोरिया (सन् 1835-1901 ई.) के चित्रमय डाक टिकटों के संग्रह का शौक खेल-खेल में जरूर पनपा था; परंतु जब डाक टिकटों की मध्य डिजाइन पर नए-नए समसामयिक व्यक्तित्व, घटनाएँ, स्थान, परंपराएँ आदि इनके डिजाइनकारों द्वारा सही-सही चित्रित होने लगीं, तब डाक टिकट संग्रह की घिसी-पिटी अवधारणा ही बदल गई। परिणामतः समसामयिक डाक टिकट जीवंत ऐतिहासिक दस्तावेज बनते चले गए जो अब सिक्कों की भाँति इतिहास लेखन के नए सशक्त माध्यम (टूल्स ऑफ हिस्ट्री राइटिंग) के रूप में सामने आए हैं।आजादी की कहानी, डाक टिकटों की जबानी
अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम की पहली लौ, जो सन् 1857 में उठी थी, वह देशवासियों की एकता के अभाव में बेअसर होकर दब चुकी थी। वह ऐसा समय था जब बड़ी संख्या में देशी राजे-महाराजे व नवाब अंग्रेजों से मुँह की खा चुके थे, शेष ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार की शरण में चले गए थे।हालाँकि, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम असफल अवश्य रहा, लेकिन जल्दी ही अंग्रेजों को देश से बाहर निकाल फेंकने के लिए जनमानस में चिनगारियाँ फूटने लगीं थीं। उस समय के एक आई.सी.एस सुरेन्द्रनाथ बनर्जी (सन् 1848-1925) के अंग्रेजी राज के खिलाफ विद्रोह से इन चिनगारियों को हवा मिली और कानूनी तरीके से देशवासियों की माँगें मनवाने के लिए सुरेंद्रनाथ बनर्जी1 ने 17 जुलाई, 1983 को एक ‘नेशनल फंड’ की स्थापना की थी। यह इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बेंजामिन डिजरायली व अंग्रेजों के बढ़ते अंह का विरोध मात्र था।भारत की स्वतंत्रता का यह विचार देशवासियों में जोरों से फैला और तभी 28 दिसंबर, 1985 को बंबई महानगरी में ‘इंडियन नेशनल यूनियन’ का जन्म हुआ। यह ‘इंडियन नेशनल यूनियन’ ही बाद में ‘इंडियन नेशनल कांग्रेस’ के नाम से प्रसिद्ध संस्था बनी। इस राष्ट्रीय संस्था की स्थापना में एक सेवानिवृत अंग्रेज आई.सी.एस. श्री ओक्टेवियन ह्यूम2 (सन् 1829-1912) का प्रमुख योगदान था। श्री ह्यूम सन् 1857 की भारतीय क्रांति के समय इटावा (उत्तर प्रदेश) में कलक्टर थे। जिन अन्य भारतीयों ने इस संस्था की स्थापना में सहयोग किया, उनमें सर्वश्री महादेव गोविंद रानाडे (सन् 1842-1904), उमेश चंद्र बनर्जी, दादाभाई नवरोजी3 (सन् 1825-1917), फिरोज शाह मेहता (सन् 1825-1915), रघुनाथ राव, गंगा प्रसाद वर्मा, मुंशी नवल किशोर4 (सन् 1836-1895) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।सन् 1985 से 1904 तक का समय ‘इंडियन नेशनल कांग्रेस’ का शैशव-काल था। उस समय इस संस्था के सदस्य राजभक्त हुआ करते थे और इसके बदले में उनको अंग्रेजों की पूरी सद्भावना और कृपा प्राप्त होती थी। अंग्रेजी सरकार भी ऐसी संस्था से खुश थी, परंतु उस समय कुछ ऐसे नेता भी मौजूद थे, जो अनुनय-विनय की नीति-रीति में तनिक भी विश्वास नहीं रखते थे और अंग्रेजी सरकार से डटकर लोहा लेना चाहते थे। इनमें महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक (सन् 1856-1920), पंजाब के लाला लाजपतराय (सन् 1865-1928) और बंगाल के विपिन चंद्र पाल5 (सन् 1858-1932) प्रमुख थे। उस समय लाल, पाल, बाल की तिकड़ी से ब्रिटिश सरकार भयभीत रहा करती थी।कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन (सन् 1887) में पं. मदन मोहन मालवीय (सन् 1861-1946) की खूब धूम रही। मालवीयजी6 छुआछूत के घोर विरोधी थे। सन् 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में बंकिमचंद्र चटर्जी (सन् 1838-1894) रचित ‘वंदे मातरम्’7 को राष्ट्रीय गीत के रूप में गाया गया था। इसे गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर8 (सन् 1961-1941) ने गाया था। यह राष्ट्रीय गीत संपूर्ण भारत में क्रांति का प्रतीक तो बन ही चुका था, साथ ही गोरी सरकार के लिए भयानक सिर दर्द भी था।आजादी की लड़ाई का दूसरा युग (सन्) 1905-1919) कांग्रेस में नरम दल और गरम दल के नेताओं के बीच वैचारकि टकराव का रहा। यह वैचारिक टकराव कांग्रेस के बनारस अधिवेशन (सन् 1905) में सामने उभर आया था। इस अधिवेशन के सभापति नरम दल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले9 (सन् 1866-1915) थे, जो ब्रिटिश साम्राज्य के अंदर रहकर ‘औपनिवेशिक स्वराज्य’ की माँग कर रहे थे। दूसरी ओर, गरम दल के बाल गंगाधार तिलक10 जो हर हालत में अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकना चाहते थे। उस समय कांग्रेस, में दलवालों की संख्या अधिक थी। अंग्रेजी सरकार को मौका मिला और उसने गरम दलवालों पर दमन का शिकंजा कस दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि तिलक को छह वर्ष की कठोर सजा मिली और उन्हें भारत से मांडले जेल में भेज दिया गया।तिलक जी का नारा था-‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा’। लाला लाजपतराय11 वही शेर-ए-पंजाब थे, जिन्होंने सन् 1928 में साइमन कमीशन के विरोध में लाहौर में जुलूस का नेतृत्व किया था और अंग्रेजों की लाठियाँ खाई थीं। 17 नवंबर, 1928 को मृत्यु से पहले लालाजी द्वारा की गई भविष्यवाणी एकदम सही निकली कि उनको लगी एक-एक लाठी अंग्रेज हुकूमत के ताबूत की एक-एक कीले साबित होगी।सन् 1914 में श्रीमती एनी बेसेंट12 नामक एक विदेशी महिला के भारतीय राजनीति में पदार्पण से आजादी की लड़ाई को प्रेरणा और बल मिला था; पर अगले ही वर्ष (1915) गोपाल कृष्ण गोखले का निधन हो गया। इसके पहले सन् 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हो चुका था। इस विश्वयुद्ध में भारतीयों ने अंग्रेजों का इस आशा में पूरा-पूरा साथ दिया था कि युद्ध के बाद भारत को आजादी दे दी जाएगी। सन् 1914 में ही गांधीजी13 दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आए थे। जवाहरलाल नेहरु की महात्मा गांधी से पहली मुलाकात सन् 1916 में हुई सन् 1918 में श्रीमती बेसेंट (सन् 1847-1933) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता चुनी गई थीं। ये प्रथम महिला कांग्रेस अध्यक्षा थीं।उस समय खोखले जी के शिष्यों में वी.एस.श्रीनिवास शास्त्री14 (सन् 1869-1946) अपनी प्रखर भाषण कला और भारतीय मूल के लोगों के लिए लगन से काम करने के कारण श्री गोखले के राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाने लगे थे। लेकिन एक बार गांधीजी के भारतीय राजनीति में प्रवेश करने के बाद गांधीजी भारतीय राजनीति की तप्त सतह पर उमड़ते-घुमड़ते बादलों की भाँति छा गए। इसके बाद सन् 1920 से आजादी की लड़ाई को भारतीय इतिहास का ‘गांधी-युग’ माना जाता है। गांधीजी ने अपनी विलक्षण सूझ-बूझ से भारत की दलित-गरीब जनता, महिलाओं व हरिजनों को राष्ट्र की मुख्य धारा में लाकर खड़ा कर दिया था। गांधीजी ने सत्य, अहिंसा और असहयोग के बल पर अपनी लड़ाई लड़ी थी। ये ही उनके मुख्य हथियार थे। जलियाँवाला बाग15 के बर्बर हत्याकांड (13 अप्रैल, 1919) ने भारतीय नेताओं को झकझोर दिया। उनका अंग्रेजी शासन पर जो थोड़ा-बहुत विश्वास शेष था वह भी उठ गया। भारतवासियों ने देशव्यापी हड़ताल करके इस घटना का विरोध प्रकट किया।10 सितंबर, 1920 में लाला लाजपतराय के सभापतित्व में हुए कांग्रेस के कल्कत्ता अधिवेशन में गांधीजी का असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पूर्ण बहुमत से पारित हो जाने के बाद एक व्यापक जन-आंदोलन शुरू हआ। गांधीजी16 ने कहा था, ‘‘अन्याय करनेवाली सरकार को सहयोग करना अन्याय को सहायता देना है।’’ अंग्रेजी सरकार ने असहयोग आंदोलन को ‘शेखचिल्ली की योजना’ का नाम देकर गांधीजी की खिल्ली उड़ाई।अब देश भर में स्वदेशी आंदोलन ने जोर पकड़ लिया था। घर-घर चरखा चलता था। वस्त्रों की होली जलती थी। इसके साथ-ही-साथ छुआछूत उन्मूलन,मद्य-निषेध, राष्ट्रभाषा-प्रचार आदि का कार्य भी तेजी से आगे बढ़ रहा था। राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन17 (सन् 1882-1962) आजीवन हिंदी आंदोलन के प्राण बने रहे। ठक्कर बापा18 (सन् 1869-1951) छुआछूत के खिलाफ जूझते रहे थे। गांधीजी से प्रभावित होकर देश के कोने-कोने से देशभक्तों की टोलियाँ उठ खड़ी हुई थीं। जवाहरलाल नेहरू (सन् 1889-1964) सरदार पटेल19 (सन् 1875-1950), डॉक्टर राजेंद्र-प्रसाद20 (सन् 1884-1963), चक्रवर्ती राजगोपालाचारी21 (सन् 1878-1972), टी प्रकाशम्22 (सन् 1872-1957), अबुल कलाम आजाद23 (सन् 1888-1958), रफी अहमद किदवई24, गोविंद वल्ल पंत25 (सन् 1887-1961), लालबहादुर शास्त्री26 (सन् 1904-1966) आदि उसी आंदोलन की देन थे। सन् 1925 में पटना में मजहरुल हक27 (सन् 1866-1930) ने ‘सदाकत आश्रम की स्थापना की थी जो बिहार में कांग्रेस का प्रमुख गढ़ था। यहाँ के सीधे-सादे डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की योग्यता का इससे बढ़कर और क्या सबूत हो सकता था कि वह ब्रिटिश भारत में कांग्रेस के तीन-तीन बार (सन् 1934, 1939 व 1947) अध्यक्ष चुने गए थे।वर्धा में श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर देश का ऐसा पहला मंदिर था, जिसे सन् 1928 में जमनालाल बजाज28 (सन् 1889-1942) के नेतृत्व में हरिजन भाइयों के लिए खोल दिया गया था। आजादी की लड़ाई में उस समय एकाएक जबरदस्त मोड़ आया जब असहयोग आंदोलन 4 फरवरी, 1922 को चौरी-चौरा (गोरखपुर, उ.प्र.) में हिंसात्मक हो उठा। अहिंसावादी गांधीजी ने यह असहोयग आंदोलन तत्काल वापस ले लिया। गांधीजी के इस निर्णय से तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष देशबंधु चितरंजनदास29 (सन् 1870-1925) व महामंत्री पं. मोतीलाल नेहरू31 (सन् 1861-1931) नाराज हो गए और उन्होंने मिलकर ‘स्वराज पार्टी’ नामक एक नए राजनीतिक दल का गठन कर डाला।सन् 1924 में महात्मा गांधी ने बेलगाँव कांग्रेस का सभापतित्व करते हुए विदेशी माल का बहिष्कार व कताई-बुनाई30 करने का प्रस्ताव रखा था। इसी वर्ष हिंदु-मुसलिम एकता के लिए गांधीजी ने 21 दिनों का उपवास रखा था। सन् 1925 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन कानपुर में हुआ। इस अधिवेशन की सभापति ‘भारत कोकिला’ श्रीमती सरोजनी नायडू32 (सन् 1879-1949) थीं। देश की नारी जागरूकता का अनुपम उदाहरण श्रीमती नायडू का यह कथन उल्लेखनीय है-‘‘मैं अबला नारी हूँ, भारत के लिए अपने आपको होम करने को तैयार हूँ।

भारतीय इतिहास का गौरव

भारतीय इतिहास
1. जब कई संस्कृतियों 5000 साल पहले ही घुमंतू वनवासी थे, भारतीय सिंधु घाटी (सिंधु घाटी सभ्यता) में हड़प्पा संस्कृति की स्थापना की।2. भारत के इतिहास के अनुसार, आखिरी 100000 वर्षों में किसी भी देश पर हमला नहीं किया है।3. भारत का अंग्रेजी में नाम ‘इंडिया’ इं‍डस नदी से बना है, जिसके आस पास की घाटी में आरंभिक सभ्‍यताएं निवास करती थी। आर्य पूजकों में इस इंडस नदी को सिंधु कहा।4. पर्शिया के आक्रमकारियों ने इसे हिन्‍दु में बदल दिया। नाम ‘हिन्‍दुस्‍तान’ ने सिंधु और हीर का संयोजन है जो हिन्‍दुओं की भूमि दर्शाता है।5. शतरंज की खोज भारत में की गई थी।6. बीज गणित, त्रिकोण मिति और कलन का अध्‍ययन भारत में ही आरंभ हुआ था।7. ‘स्‍थान मूल्‍य प्रणाली’ और ‘दशमलव प्रणाली’ का विकास भारत में 100 बी सी में हुआ था।8. विश्‍व का प्रथम ग्रेनाइट मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में बृहदेश्‍वर मंदिर है। इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़े से बनें हैं यह भव्‍य मंदिर राजा राज चोल के राज्‍य के दौरान केवल 5 वर्ष की अवधि में (1004 ए डी और 1009 ए डी के दौरान) निर्मित किया गया था।9. भारत विश्‍व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विश्‍व का छठवां सबसे बड़ा देश तथा प्राचीन सभ्‍यताओं में से एक है।10. सांप सीढ़ी का खेल तेरहवीं शताब्‍दी में कवि संत ज्ञान देव द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे। इस खेल में सीढियां वरदानों का प्रतिनिधित्‍व करती थीं जबकि सांप अवगुणों को दर्शाते थे। इस खेल को कौडियों तथा पांसे के साथ खेला जाता था। आगे चल कर इस खेल में कई बदलाव किए गए, परन्‍तु इसका अर्थ वहीं रहा अर्थात अच्‍छे काम लोगों को स्‍वर्ग की ओर ले जाते हैं जबकि बुरे काम दोबारा जन्‍म के चक्र में डाल देते हैं।11. दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट का मैदान हिमाचल प्रदेश के चायल नामक स्‍थान पर है। इसे समुद्री सतह से 2444 मीटर की ऊंचाई पर भूमि को समतल बना कर 1893 में तैयार किया गया था।12. भारत में विश्‍व भर से सबसे अधिक संख्‍या में डाक खाने स्थित हैं।13. विश्‍व का सबसे बड़ा नियोक्‍ता भारतीय रेल है, जिसमें दस लाख से अधिक लोग काम करते हैं।14. विश्‍व का सबसे प्रथम विश्‍वविद्यालय 700 बी सी में तक्षशिला में स्‍थापित किया गया था। इसमें 60 से अधिक विषयों में 10,500 से अधिक छात्र दुनियाभर से आकर अध्‍ययन करते थे। नालंदा विश्‍वविद्यालय चौथी शताब्‍दी में स्‍थापित किया गया था जो शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन भारत की महानतम उपलब्धियों में से एक है।15. आयुर्वेद मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे आरंभिक चिकित्‍सा शाखा है। शाखा विज्ञान के जनक माने जाने वाले चरक में 2500 वर्ष पहले आयुर्वेद का समेकन किया था।16. भारत 17वीं शताब्‍दी के आरंभ तक ब्रिटिश राज्‍य आने से पहले सबसे सम्‍पन्‍न देश था। क्रिस्‍टोफर कोलम्‍बस ने भारत की सम्‍पन्‍नता से आकर्षित हो कर भारत आने का समुद्री मार्ग खोजा, उसने गलती से अमेरिका को खोज लिया।17. नौवहन की कला और नौवहन का जन्‍म 6000 वर्ष पहले सिंध नदी में हुआ था। दुनिया का सबसे पहला नौवहन संस्‍कृ‍त शब्‍द नव गति से उत्‍पन्‍न हुआ है। शब्‍द नौ सेना भी संस्‍कृत शब्‍द नोउ से हुआ।18. भास्‍कराचार्य ने खगोल शास्‍त्र के कई सौ साल पहले पृथ्‍वी द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्‍कर लगाने में लगने वाले सही समय की गणना की थी। उनकी गणना के अनुसार सूर्य की परिक्रमा में पृथ्‍वी को 365.258756484 दिन का समय लगता है।19. भारतीय गणितज्ञ बुधायन द्वारा ‘पाई’ का मूल्‍य ज्ञात किया गया था और उन्‍होंने जिस संकल्‍पना को समझाया उसे पाइथागोरस का प्रमेय करते हैं। उन्‍होंने इसकी खोज छठवीं शताब्‍दी में की, जो यूरोपीय गणितज्ञों से काफी पहले की गई थी।20. बीज गणित, त्रिकोण मिति और कलन का उद्भव भी भारत में हुआ था। चतुष्‍पद समीकरण का उपयोग 11वीं शताब्‍दी में श्री धराचार्य द्वारा किया गया था। ग्रीक तथा रोमनों द्वारा उपयोग की गई की सबसे बड़ी संख्‍या 106 थी जबकि हिन्‍दुओं ने 10*53 जितने बड़े अंकों का उपयोग (अर्थात 10 की घात 53), के साथ विशिष्‍ट नाम 5000 बीसी के दौरान किया। आज भी उपयोग की जाने वाली सबसे बड़ी संख्‍या टेरा: 10*12 (10 की घात12) है।21. वर्ष 1986 तक भारत विश्‍व में हीरे का एक मात्र स्रोत था (स्रोत: जेमोलॉजिकल इंस्‍टी‍ट्यूट ऑफ अमेरिका)22. बेलीपुल विश्‍व‍ में सबसे ऊंचा पुल है। यह हिमाचल पवर्त में द्रास और सुरु नदियों के बीच लद्दाख घाटी में स्थित है। इसका निर्माण अगस्‍त 1982 में भारतीय सेना द्वारा किया गया था।23. सुश्रुत को शल्‍य चिकित्‍सा का जनक माना जाता है। लगभग 2600 वर्ष पहले सुश्रुत और उनके सहयोगियों ने मोतियाबिंद, कृत्रिम अंगों को लगना, शल्‍य क्रिया द्वारा प्रसव, अस्थिभंग जोड़ना, मूत्राशय की पथरी, प्‍लास्टिक सर्जरी और मस्तिष्‍क की शल्‍य क्रियाएं आदि की।24. निश्‍चेतक का उपयोग भारतीय प्राचीन चिकित्‍सा विज्ञान में भली भांति ज्ञात था। शारीरिकी, भ्रूण विज्ञान, पाचन, चयापचय, शरीर क्रिया विज्ञान, इटियोलॉजी, आनुवांशिकी और प्रतिरक्षा विज्ञान आदि विषय भी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में पाए जाते हैं।25. भारत से 90 देशों को सॉफ्टवेयर का निर्यात किया जाता है।26. भारत में 4 धर्मों का जन्‍म हुआ – हिन्‍दु धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म ओर सिक्‍ख धर्म, जिनका पालन दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्‍सा करता है।27. जैन धर्म और बौद्ध धर्म की स्‍थापना भारत में क्रमश: 600 बी सी और 500 बी सी में हुई थी।28. इस्‍लाम भारत का और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है।29. भारत में 3,00,000 मस्जिदें हैं जो किसी अन्‍य देश से अधिक हैं, यहां तक कि मुस्लिम देशों से भी अधिक।30. भारत में सबसे पुराना यूरोपियन चर्च और सिनागोग कोचीन शहर में है। इनका निर्माण क्रमश: 1503 और 1568 में किया गया था।31. ज्‍यू और ईसाई व्‍यक्ति भारत में क्रमश: 200 बी सी और 52 ए डी से निवास करते हैं।32. विश्‍व में सबसे बड़ा धार्मिक भवन अंगकोरवाट, हिन्‍दु मंदिर है जो कम्‍बोडिया में 11वीं शताब्‍दी के दौरान बनाया गया था।33. तिरुपति शहर में बना विष्‍णु मंदिर 10वीं शताब्‍दी के दौरान बनाया गया था, यह विश्‍व का सबसे बड़ा धार्मिक गंतव्‍य है। रोम या मक्‍का धामिल स्‍थलों से भी बड़े इस स्‍थान पर प्रतिदिन औसतन 30 हजार श्रद्धालु आते हैं और लगभग 6 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति दिन चढ़ावा आता है।34. सिक्‍ख धर्म का उद्भव पंजाब के पवित्र शहर अमृतसर में हुआ था। यहां प्रसिद्ध स्‍वर्ण मंदिर की स्‍थापना 1577 में गई थी।35. वाराणसी, जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन शहर है जब भगवान बुद्ध ने 500 बी सी में यहां आगमन किया और यह आज विश्‍व का सबसे पुराना और निरंतर आगे बढ़ने वाला शहर है।36. भारत द्वारा श्रीलंका, तिब्‍बत, भूटान, अफगानिस्‍तान और बंगलादेश के 3,00,000 से अधिक शरणार्थियों को सुरक्षा दी जाती है, जो धार्मिक और राजनैतिक अभियोजन के फलस्‍वरूप वहां से निकल गए हैं।37. माननीय दलाई लामा तिब्‍बती बौद्ध धर्म के निर्वासित धार्मिक नेता है, जो उत्तरी भारत के धर्मशाला से अपने निर्वासन में रह रहे हैं।38. युद्ध कलाओं का विकास सबसे पहले भारत में किया गया और ये बौद्ध धर्म प्रचारकों द्वारा पूरे एशिया में फैलाई गई।39. योग कला का उद्भव भारत में हुआ है और यहां 5,000 वर्ष से अधिक समय से मौजूद हैं।
निस्सन्देह भारत की सभ्यता विश्व के प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है।
सिन्धु घाटी में ईसा पूर्व 2300 से 1750 तक जगमगाते रहने वाली उच्च सभ्यता के अवशेष आज भी विद्यमान हैं।
ऐसा माना जाता है कि ईसा पूर्व 2000 से 1500 के मध्य इन्डो-यूरोपियन भाषाई परिवार से सम्बन्ध रखने वाले आर्यों ने हिमालय के उत्तर-पश्चिम दर्रों से भारत में प्रवेश किया और सिन्धु घाटी की सभ्यता को नष्ट कर दिया।
वे आर्य सिन्धु घाटी एवं पंजाब में बस गये। कालान्तर में वे भारत के पूर्व तथा दक्षिण दिशाओं में स्थित स्थानों में फैल गये।
आर्यों ने ही भारतीय सभ्यता से संस्कृत भाषा तथा जाति प्रणाली का परिचय करवाया।
ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में उत्तर-भारत फारसी साम्राज्य का अंग बन गया।
ईसा पूर्व 326 में मेकेडोनिया के अलेक्जेंडर महान ने फारसियों राज्यों को विजित किया। यद्यपि मेकेडोनियन्स का नियन्त्रण अधिक समय तक नहीं रहा किन्तु उनके अल्पकाल के नियन्त्रण के फलस्वरूप भारत एवं भूमध्यरेखीय देशों के मध्य व्यापारिक सम्बंध अवश्य स्थापित हो गया। रोमन संसार भारत को एक मसालों, औषधियों और कपास के कपड़ों से परिपूर्ण देश के रूप में जानने लगा।
मेकेडोनियन शासनकाल के पश्चात् भारत पर मूल राजवंशों और सुदूर पहाड़ों पर बसने वाले जनजातियों का नियन्त्रण हो गया। मूल राजवंशों में मौर्य तथा गुप्त वँश सर्वाधिक प्रसिद्ध हुये।
मौर्य साम्राज्य प्रथम सम्राज्य था जिसने लगभग सम्पूर्ण भारत को एक शासन के नियन्त्रण में अधीन बनाया।
मौर्य साम्राज्य का काल ईसा पूर्व लगभग 324 से 185 तक रहा।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने शासनकाल, जो कि ईसा पूर्व लगभग 298 तक चला, में उत्तर-भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अधिकतम स्थानों को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया।
चन्द्रगुप्त के पुत्र बिन्दुसार और बिन्दुसार के पुत्र अशोक ने अपने साम्राज्य का विस्तार सुदूर दक्षिण भारत तक कर लिया।
पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) उनकी राजधानी थी।